आज भारतीय दो अलग -अलग विचारधाराओं द्वारा शाशित शोषित हो रहे हैं। उनके राजनीतिक आदर्श जो संविधान के प्रस्तावना में इंगित हैं वो स्वतंत्रता , समानता , और भाई -चारे को स्थापित करते हैं। और उनके धर्म में समाहित सामाजिक आदर्श इससे इनकार करते हैं।डा.आम्बेडकर

बुधवार, 4 अक्तूबर 2017

जब जब दर्पण देखा , मुझे भीम नज़र आते है !

दर्पण
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जब जब दर्पण देखा
मुझे भीम नज़र आते
है

महलों में बन गए राजकुवंर
और बन गए राजघराने

कैसे बन बैठे महलो के राजा
किसी को नज़र नही आता है

अपने को खुद न्योछावर करके
अधिकार दिलाये मुश्किल से

परिवार खत्म कर डाला अपना
जब देखा था जन जन का सपना

कोई भी उद्देश्य ना था जीने का
कभी मोल ना समझ अपने खून पसीने के

जाती थी इज़्ज़त नारियों की
जीते जी मारी जाती थी

देखा न कभी दिन औऱ देखी न कभी रात
दे गया वो महामानव ही था इज़्ज़त की सौगात

मानव को सम्मान दिलाकर
माँ बहनो को अधिकार दिलाकर

मिटा दिया खुद को बेटा था भीमाबाई का
चुका दिया सब कर्ज़ था उसने जीवन मे एक एक पॉइ का

था लाचार नुमाइंदा मानव था
शिक्षा से हुआ भीम दानव था

वर्षो बाद समाज जागा है
देखो कितना हुआ अभागा है

मिला नही अधिकार अभी तक
दिया भीम ने संविधान में हमको

हां अब तक तो चुप बैठे थे
शिक्षित होकर पाएंगे अधिकार यही कहते थे

जब जब दर्पण देखा
हमको संविधान नज़र आता है

करना है अब नही डरना है
दिया भीम ने जो हमको अधिकार हमे अर्जित करना है

हमको अक्सर देखो भीम नज़र आते है
जब जब दर्पण देखो

हमे भीम नज़र आते है
हमे भीम नज़र आते है!!!


कंचन भारती
आगरा
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