क्या जीवन इसको कहते है |
चलते चलते इस जीवन में
सुबह हुई फिर शाम हुई,,
एक रौशनी जीवन की थी
एक हुई थी इस नाम हुई
कहाँ छुपा था जीवन मेरा
जान हुई ना पहचान हुई
एक अँधेरे जीवन की वो उदगार बानी
नारी हूँ अब नारी होकर जीवन का उद्धार बनी
नहीं समझना अब एक पल भी क्या नारी क्या जीवन है
अँधेरे पथ पर चलते चलते खो जाना क्या जीवन है
आन नही पहचान नही क्या जीवन इसको कहते है
नारी के आँचल में ही पुरुषो के जीवन पलते है
बचपन छिना,यौवन छिना जीवन छीन लिया
क्या खोया क्या पाया बस इस धरती का उद्धार किया
बुद्धि विवेक कुशलता पाकर भी जीवन में अंधकार हुआ
सारा जीवन नाम तेरे फिर भी कुछ न साकार हुआ
सोचा था क्या खुद को खोकर नारी ने इस जीवन में क्या कार्य किया
तुझको जीवन देकर तेरे सृजन को साकार किया
तेरी होकर तेरी रचना तेरे जीवन को आकार दिया
तूने मुझको कुछ ना समझा हरदम ही दुत्कार दिया
अब पूछे मुझसे ही हरदम मैंने तुझ पर क्या उपकार किया
तू ना जाने मुझको तूने हरदम ही दुत्कार दिया
सुबह हुई मेरे जीवन की देख ना पाई एक भी पल
जिन्दा हूँ कैसे जीवन पथ पर जीती हूँ बस मर मर कर
ऐसी भी क्या जीवन रचना जिसका कोई भान ना हो
नारी हूँ तो लेकिन जिसका कोई सम्मान ना हो
सुबह हुई थी जब जीवन की प्रतिक्रिया में उल्लास हुआ
आज समझती हूँ जीवन जीने का एक प्रयास हुआ
हार नही मानी हमने जीवन में हार नही मानूँगी अब
जीवन को तो जी चुकी जीवन की शाम ना मानूँगी अब
हर दिन सिर्फ सबेरा होगा शाम ना होगी जीवन में
जीकर देखा खोकर देखा क्या है सावन जीवन में
होंगे कितने व्यर्थ सदा जीवन में बहता पानी है
नारी जीवन सदियो से तेरी यही कहानी है
नारी जीवन सदियो से तेरी यही कहानी है
कंचन भारती
598/5 आगरा
चलते चलते इस जीवन में
सुबह हुई फिर शाम हुई,,
एक रौशनी जीवन की थी
एक हुई थी इस नाम हुई
कहाँ छुपा था जीवन मेरा
जान हुई ना पहचान हुई
एक अँधेरे जीवन की वो उदगार बानी
नारी हूँ अब नारी होकर जीवन का उद्धार बनी
नहीं समझना अब एक पल भी क्या नारी क्या जीवन है
अँधेरे पथ पर चलते चलते खो जाना क्या जीवन है
आन नही पहचान नही क्या जीवन इसको कहते है
नारी के आँचल में ही पुरुषो के जीवन पलते है
बचपन छिना,यौवन छिना जीवन छीन लिया
क्या खोया क्या पाया बस इस धरती का उद्धार किया
बुद्धि विवेक कुशलता पाकर भी जीवन में अंधकार हुआ
सारा जीवन नाम तेरे फिर भी कुछ न साकार हुआ
सोचा था क्या खुद को खोकर नारी ने इस जीवन में क्या कार्य किया
तुझको जीवन देकर तेरे सृजन को साकार किया
तेरी होकर तेरी रचना तेरे जीवन को आकार दिया
तूने मुझको कुछ ना समझा हरदम ही दुत्कार दिया
अब पूछे मुझसे ही हरदम मैंने तुझ पर क्या उपकार किया
तू ना जाने मुझको तूने हरदम ही दुत्कार दिया
सुबह हुई मेरे जीवन की देख ना पाई एक भी पल
जिन्दा हूँ कैसे जीवन पथ पर जीती हूँ बस मर मर कर
ऐसी भी क्या जीवन रचना जिसका कोई भान ना हो
नारी हूँ तो लेकिन जिसका कोई सम्मान ना हो
सुबह हुई थी जब जीवन की प्रतिक्रिया में उल्लास हुआ
आज समझती हूँ जीवन जीने का एक प्रयास हुआ
हार नही मानी हमने जीवन में हार नही मानूँगी अब
जीवन को तो जी चुकी जीवन की शाम ना मानूँगी अब
हर दिन सिर्फ सबेरा होगा शाम ना होगी जीवन में
जीकर देखा खोकर देखा क्या है सावन जीवन में
होंगे कितने व्यर्थ सदा जीवन में बहता पानी है
नारी जीवन सदियो से तेरी यही कहानी है
नारी जीवन सदियो से तेरी यही कहानी है
कंचन भारती
598/5 आगरा
Nice
जवाब देंहटाएं