आज भारतीय दो अलग -अलग विचारधाराओं द्वारा शाशित शोषित हो रहे हैं। उनके राजनीतिक आदर्श जो संविधान के प्रस्तावना में इंगित हैं वो स्वतंत्रता , समानता , और भाई -चारे को स्थापित करते हैं। और उनके धर्म में समाहित सामाजिक आदर्श इससे इनकार करते हैं।डा.आम्बेडकर

रविवार, 24 मई 2020

Talab

*संरक्षण के तलबगार हैं चंदेरी के ऐतिहासिक तालाब* 
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         जल जमीन जंगल और इंसान एक ऐसा महागठबंधन है जिसके अंतर्गत सबकी अपनी-अपनी सीमाएं तय है | या यह कहें कि यह एक ऐसा चक्र है जिसमें समानता के साथ-साथ सब को घूमना चाहिए | यदि किसी ने भी थोड़ी गड़बड़ी की, तो तय है कि संतुलन बिगड़ जावेगा जैसे ही संतुलन बिगड़ेगा नतीजे अच्छे नहीं आएंगे |

           हम बात कर रहे हैं जल यानी पानी जिसके बिना जमीन जंगल जीव जंतु क्या इंसान भी एक पल जिंदा नहीं रह सकता | मानव की मूलभूत आवश्यकताओं में से एक है पानी | पानी सदियों से इंसान की प्यास बुझाता चला आ रहा है दोनों का तालमेल अच्छा था सब कुछ ठीक-ठाक था |

          जैसे ही मानव ने जल जमीन जंगल से अपना तालमेल बिगाड़ा है नतीजा सामने हैं | आज आसमान से बरसती आग ने सब का जीना मुहाल कर दिया है | दूसरी ओर जल को लेकर सारी दुनिया में त्राहि-त्राहि मची हुई है | लोग एक-एक बूंद को तरस रहे हैं, शासन दुनियाभर के उपाय कर जल को संरक्षण एवं संग्रहित करने में जुटी हुई है |

          मई-जून आते ही जल को लेकर स्थिति और भयावह हो जाती है | अधिकतर हर जगह चाहे व बड़े शहर हो अथवा गांव पानी को लेकर परेशानियां बढ़ जाती हैं, एक-एक बूंद पानी को लेकर बहस छिड़ने लगती है | सच है पानी है तो सब कुछ है, पानी नहीं तो कुछ भी नहीं, जल है तो जीवन है बिन पानी सब सून, इंसान को जिंदा रहने के लिए पहली जरूरत है पानी |

           क्या जल को मानव जीवन तक सीमित रखा जा सकता है ? नहीं कतई नहीं क्योंकि जल मात्र इंसान की आवश्यकताओं की ही पूर्ति नहीं करता वरन् पृथ्वी पर विचरण कर रहे पशु पक्षी जीव जंतुओं के अलावा पृथ्वी की प्यास को भी बुझाता है | किसी भी देश प्रदेश की उन्नति में जल की भूमिका नियत रहती है इसलिए ही जल के महत्व को सब दूर  स्वीकारा गया है |

           वर्तमान एक हजार साल पुराने चंदेरी नगर स्थापना की नींव में कीर्ति सागर नामक तालाब का जन्म और आज हमारे सामने कीरत सागर नाम से प्राचीन मूल स्थिति में उपस्थित उक्त तालाब सौ सवाल का एक जवाब बनकर जल संरक्षण संवर्धन हेतु मार्ग प्रदर्शक बना हुआ है | 

           आगे आने वाले समय में पानी की एक-एक बूंद को कैसा सजेहा जाए इसके लिए तत्कालीन चन्देरी शासकों ने प्रत्येक स्तर पर जतन भी किए हैं | परिणाम स्वरूप कही छोटे, कहीं बड़े आकार प्रकार में निर्मित तालाब तलैया मौजूद जल स्रोत आज हमें आने वाली पीढ़ी हेतु जल संरक्षण का सबक देने का माध्यम बने हुए हैं |

           वर्तमान नगर में स्थित एक दर्जन से भी अधिक तालाब सदियों से इस नगर में निवासरत इंसानों के अलावा पशु पक्षियों आदि की जरूरतों को पूरा करते हुए नगर सौदर्यकरण में इजाफा के अलावा पर्यावरण संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हुए चन्देरी पर्यटन को बढ़ावा देने का कार्य कर रहे हैं | एक के बाद एक श्रंखलाबद्ध तालाब की स्थापना प्राचीन जल संग्रह प्रणाली के उत्तम उदाहरण हैं |

          आश्चर्य किंतु सच यह है कि सैकड़ों साल पूर्व निर्मित किए गए तालाब अनेक तरह की तूफानी, सुल्तानी-आसमानी, अधिक वर्षा की मार झेल कर भी ज्यों के त्यों आज भी हमारे सामने हैं | फिर चाहे वह एक हजार साल पुराना 10-11 वीं सदी में निर्मित कीरत सागर तालाब हो, या फिर 1433 ईस्वी में निर्मित सिंहपुर तालाब हो, या फिर 1467 ईस्वी में निर्मित हौज खास तालाब हो |

           या फिर 1445 ईस्वी में निर्मित सुल्तानिया तालाब हो, या फिर 1495 ईस्वी में निर्मित चिमनुआ तालाब हो, या फिर 14- 15 वीं सदी में निर्मित धुबया तालाब, पन बावाड़ी तालाब, लाल बावड़ी तालाब, रामनगर तालाब या फिर प्राचीन परमेश्वरा तालाब, हौज खुसल्ला तालाब, ताकबंदी तालाब, सागर ताल के अलावा जोहर तलैया खसियों की तलैया, कू-कू तलैया रही हो |

         महत्वपूर्ण प्रश्न आज यह है कि जल संरक्षण संवर्धन को लेकर शासन-प्रशासन स्तर पर प्रत्येक उपाय किए जा रहे हैं कि जल को कैसे बचाया जावे | लाखों - करोड़ों रुपया पानी बचाने के लिए पानी की तरह बहाया जा रहा है | वहीं दूसरी ओर हमारी नगर की अमूल्य धरोहर प्राचीन ऐतिहासिक तालाब जो जल संचय प्रणाली का अनुपम उदाहरण है अपनी दुर्दशा बदहाली पर खून के आंसू पी रहे हैं |

           सबसे बड़ी बात यह है कि सदियों पूर्व निर्मित उक्त तालाब आज भी वैसी की वैसी स्थिति में हमारे सामने हैं, जिन्हें बचाया जाना सार्वजनिक हित में अनिवार्य है | शासकीय स्तर पर की जा रही निरंतर उपेक्षा का दंश झेल रही उक्त जल संरचनाएं संरक्षण संवर्धन के अभाव में अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए संघर्षरत हैं |

             जल संरक्षण संवर्धन के प्रति पूर्ण उपेक्षा उदासीनता का उदाहरण यदि कहीं देखना है तो चंदेरी के प्राचीन तालाब सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं | चंदेरी पर्यटन विरासत के अहम अध्याय की पूर्णता अनदेखी समझ से परे है |

            ऐसा भी नहीं है कि स्थानीय तालाब जल संरक्षण हेतु कभी प्रयास न किए गए हो | शासकीय-अशासकीय स्तर पर बारंबार किए गए हैं | धुबया तालाब, हौजखास तालाब सार्वजनिक जनभागीदारी, श्रमदान उपरांत आए सुखद परिणाम के श्रेष्ठ उदाहरण हैं |

             बावजूद इसके अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है | उदाहरण के तौर पर पन बावड़ी तालाब, लाल बावड़ी तालाब, सिंहपुर तालाब, ताकबंदी तालाब, कीरत सागर तालाब, गिलाउआ तालाब, चिमनुआ तालाब आदि में आज तक कभी भी किसी तरह का कोई संरक्षण कार्य नहीं हुआ है |

          जबकि पन बावड़ी तालाब की रचना उसका आकार-प्रकार एक तरह से *स्विमिंग पूल* का एहसास कराती है | लाल बावड़ी तालाब, सिंहपुर तालाब, सुल्तानिया तालाब एवं रामनगर तालाब की चौड़ी-चकली पार पर्यटन नजरिए से विकास हेतु कई संभावनाएं प्रस्तुत करती है |

           वहीं रामनगर तालाब की पार पर 1698 ईस्वी में निर्मित महल, ठीक इसी प्रकार सिंहपुर तालाब की पार से लगकर पठार पर 1656 ईस्वी में निर्मित महल चंदेरी पर्यटन के मुख्य बिंदु में शुमार हो कर हेरिटेज होटल स्थापना के संकेत देते हैं | दूसरी ओर परमेश्वरा तालाब में श्री लक्ष्मण जी मंदिर का प्रस्तुतीकरण एवं सागर नामक तालाब श्री जागेश्वरी देवी मंदिर का अभिन्न अंग होकर धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के प्रबल पक्षधर बने हुए हैं |

         नगर से 225 फीट ऊंची किला पहाड़ी पर स्थित प्राचीन गिलाउआ तालाब जंगल परिवेश से सराबोर होकर इको पर्यटन हेतु बेहतरीन संभावनाएं अपने दामन में बांधे हुए होटल किला-कोठी में ठहरे अथवा किला भ्रमण को आए प्रत्येक पर्यटक को तालाब तक चहल-कदमी का सादर आमंत्रण देता नजर आता है |

             चंदेरी के प्राचीन तालाब मात्र विरासत की बात ही नहीं करते, मात्र पर्यटन बढ़ावा देने की बात नहीं करते, मात्र नगर सौंदर्यकरण में इजाफा की बात नहीं करते, मात्र पर्यावरण संतुलन की बात नहीं करते बल्कि सभी तत्वों का समावेश करते हुए एक नहीं अनेक परिवारों की रोजी-रोटी आमदनी परिवारों के भरण - पोषण का जरिया बनकर मानवीय सेवा की दास्तां बयान भी करते हैं |

          कारण है कि अधिकांश तालाबों में मछली पालन के अलावा सिंघाड़ा, मुरार, कमलघट्टे का उत्पादन किया जा रहा है | वहीं कई तालाब का पानी कृषि भूमि की सिंचाई उपयोग में आ कर कृर्षि उत्पादन बढ़ाने में कार्यरत है |

       दु:ख होता है जब ऐसे ऐतिहासिक एवं पुरातन तालाबों के संरक्षण संवर्धन की चर्चा ना होकर विपरीत इसके धुबया, पन बावड़ी, लाल बावड़ी नामक तालाबों का एकीकरण कर झील निर्माण की चर्चा कर *विनाश पर आधारित विकास* की बात कर अनेक तरह की मानवीय समस्याओं के जन्म देने के प्रयास किए जाते हैं |

           नगर के प्राचीन तालाब मात्र जल संग्रह तक ही सीमित न होकर चंदेरी पर्यटन क्षेत्र में अहम भूमिका अदा करने वाले किरदार हैं | अतएव आज जरूरत है की उक्त सभी तालाबों के संरक्षण गहरीकरण एवं उनके प्राचीन घाट पार मजबूती करण के अलावा पार सौंदर्यकरण, विद्युत सौंदर्यीकरण, जलविहार हेतु नौकायान, रंगीन गुब्बारे स्थापना, पर्यटक सुविधा विस्तार अंतर्गत पार पर बैठक, प्रसाधन आदि मुहैया कराना चंदेरी पर्यटन की मौन किंतु ठोस मांग है |

        उक्त सभी कार्य धरातल पर अमल हेतु स्थानीय नगरीय निकाय, स्थानीय जनपद पंचायत, मध्य प्रदेश राज्य पर्यटन विकास निगम, मध्य प्रदेश राज्य पर्यटन बोर्ड, वन विभाग के साथ स्थानीय प्रशासन की  पहल के बिना संभव नहीं, जिसका अभी तक अभाव नजर आता रहा है |
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