आज भारतीय दो अलग -अलग विचारधाराओं द्वारा शाशित शोषित हो रहे हैं। उनके राजनीतिक आदर्श जो संविधान के प्रस्तावना में इंगित हैं वो स्वतंत्रता , समानता , और भाई -चारे को स्थापित करते हैं। और उनके धर्म में समाहित सामाजिक आदर्श इससे इनकार करते हैं।डा.आम्बेडकर

बुधवार, 28 फ़रवरी 2018

हमारी सोच और लडाई का दायरा सीमित है | सुरेश वाघेला

सुरेश वाघेला की कलम से
साथियों हमारी सोच और लड़ाई का दायरा सीमित हैं|

सरकारी स्कूलो में जहां छात्रों को कक्षा 8 से 9 तक धक्कल पास की नीति निर्धारित की गई हैं |
 जिससे आमजन में शिक्षको के प्रति असंतोष व्याप्त हो रहा हैं|
   कहते हैं शिक्षको को सरकार मोटी रकम (वेतन ) देती हैं पर वे बच्चों को पढ़ा नहीं रहे हैं |
दूसरा हर विभाग में उच्च व निम्न स्तर पर बैकलॉग इतना बाकि हैं कि पहले लगे कर्मचारियों पर कार्य का अतिरिक्त बोझ बढ़ रहा हैं |
 जिससे कई आमजन के कार्य बाधित हो रहे हैं ,,वहीं जनता व कर्मचारियों में असंतोष |
तीसरी महत्वपूर्ण बात जनता और पुलिस में बडे़ पैमाने पर असंतोष व्याप्त हैं |
     पुलिस के वेतन भत्तों में सरकार हर वर्ष कटौती कर आमजन को लूटने के लिए भ्रष्टाचार के लिए पुलिस को दावत दे रही हैं ,ऐसे में पुलिस सरकार से लड़ नहीं सकती और आमजन को लूट रही हैं |
जिससे सियाणा के यूवक को पुलिस सत्यापन रिपोर्ट के लिए मांगे गए पैसो पर यूवक की जागरुकता से खफा पुलिस जनता से उलझ रही हैं ,हम पुलिस से लड़ रहे हैं |
सायला में एक यूवक को मार कर पानी की टंकी में डाला जाता हैं ,हम हंगामा करते हैं ,पुलिस तय समय में दोषी को गिरफ्तार करते हैं ,,और एकबार पुलिस को सलामी देते हैं |
वही कई जगह व्यवस्था के निर्माताओं द्वारा हमारे समाज के किसी व्यक्ति,छात्र,महिला,बच्चियों की हत्या,असमत लूटने वाले को पुलिस नहीं बचाती व्यवस्था बचाती हैं ,,हम आधि अधुरी जानकारी के कारण पुलिस से उळझ जाते हैं ,,दुश्मन अपने मिशन में कामयाब हो जाता हैं |
हमारी लड़ाई का दायरा सीमित हो चूका हैं |
 हमारी लडा़ई बेशक पुलिस,टीचर,कर्मचारी से हो पर वह लड़ाई जीतने के लिए नहीं व्यवस्था को उजागर कर देश के शासक वर्ग को हिला कर जनता का असंवैधानिक व्यवस्था से अवगत करवाना हमारा मकसद होना चाहिये ,ताकि व्यवस्था जनक की जड़े हील जाए |
                      सुरेश वाघेला
                  प्रदेश अध्यक्ष बामसेफ
                        राजस्थान

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