पैगाम था ये भीम का तुम आगे ही बढ़ो,
लेकर कलम सी तलवार से अन्याय से लड़ो,
अब न वो मंजर है अब न है कोई साथी,
आपस में ही हम करते अब हाथा-पाती,
टुकड़ों में बिखरे है आज के सब साथी,
फिर कैसे होगा उजाला कैसे होगी क्रांति,
पढ़ लिख कर देखो कैसे हुए पराये,
कोई तो जा कर उनकों तो ये समझाए
जिनकी वजह से हम इस मुकाम पर आये,
फिर क्यों लबों पर दूजे का नाम आये,
आने वाले कल में तुम कुछ कर के दिखाओ,
सारे ही भारत को तुम बोधमय बनाओ,
भीम का यही था सपना तुम पूरा उसे बनाओ,
घर-घर में पंचशील का नारा तुम लगाओ !
जय भीम जय प्रबुद्ध भारत
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें