हम या हमारे समाज के लोग अपने भले या स्वार्थ के लिये पूरे भारत में चाहे वे स्वयम् को बलाई कहते हो या बैरवा, जाटव कहते हो या मेघवाल या अन्य| जब अच्छा रिस्ता मिलता है तो आपस में अपने बच्चों की शादिया करके पीड़ियों-पीड़ियों तक के सम्बंध स्थापित कर लेते है तथा जब इन समाजों के उच्च अधिकारियों एवम् विधायकों, सांसदों या मंत्रियों के पास जाते है तो अपने आपको उनके समाज का बताकर अपने हित का काम निकाल लेते है तथा उनसे आगे तक का सम्बंध बनाये रखने के लिये हर संभव प्रयास करते है| इस प्रकार खुद का भला या स्वार्थ के लिये तो हम अपने आपको एक समाज का बताने अथवा मान लेने में कोई परहेज नहीं करते परन्तु जब पूरे समाज के भले या हित की बात आती है अथवा पूरे समाज को एक होने या करने की बात आती है तो उस वक्त हम एक दूसरे को अलग-अलग जाति या समाज का बताने लगते है यह दोहरी मानसिकता हम क्यों रखते है| क्या हम इस प्रकार स्वार्थ पूर्ण एवम् कूप मण्डूक वाली प्रवृती को त्यागकर अपने-अपने दूषित एवम् संकीर्ण कूपों से बाहर निकलकर इन सभी प्रकार के कूपो को आपस में जोड़कर एक स्वच्छ नदी या सागर का रूप नही ले सकते| जिसमे हम सब की हर प्रकार से भलाई हो ऑर किसी दबाव या प्रभाव से नही बल्कि सच्चे मन के लगाव से अपने आपको मेघवंशी माने अतः हम सभी १६७१ नामों अथवा उप-जातियों में बिखरे एवम् शोषित पड़े समाजों को एक सून्दर सागर रूपी नाम "मेघवंश" में आकर अपनी दबंग पहचान बनानी चाहिए ताकि हमारे मेघवंश समाज के बेहत्तर सामाजिक, आर्थिक एवम् राजनेतिक विकास के द्वार खुल सकें|
जय मेघ! जय भीम! जय भारत!
समाज की कड़ी से कड़ी जॉडो! इसलिये दोड़ो मेघवंशी दोड़ो!
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