आज भारतीय दो अलग -अलग विचारधाराओं द्वारा शाशित शोषित हो रहे हैं। उनके राजनीतिक आदर्श जो संविधान के प्रस्तावना में इंगित हैं वो स्वतंत्रता , समानता , और भाई -चारे को स्थापित करते हैं। और उनके धर्म में समाहित सामाजिक आदर्श इससे इनकार करते हैं।डा.आम्बेडकर

गुरुवार, 2 मई 2013

बता रे पंडित ज्ञानी कौन चाम से न्यारा

बता रे पंडित ज्ञानी कौन चाम से न्यारा ..
चाम का ब्रह्मा, चाम का विष्णु, चाम का सकल पसारा..
चाम का योगी, चाम का भोगी, चाम का गुरु तुम्हारा...
कह रैदास सुनो रे पंडित ज्ञानी, चाम का गुरु नाही हमारा...”
“जब देखा तब चामे चाम, मंदिर मट खोले राम ..
चाम का ऊंट, चाम का नगारा, चामे चाम बजा बनहारा...
चाम का बछड़ा, चाम की गाय, चामे चाम दुहावन जाय...
चाम का घोडा, चाम का जिन, चामे चाम करे तालीम..

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें