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बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर और बाबा रामदेवजी |
जो लोग समझते है बाबासाहब के छायाचित्र लगाना, जगह जगह उनकी मुर्तिया प्रस्थापित करना, साल में तिन चार बार पूजा करना, जयंती उत्सव मनाना ही बाबासाहब का सम्मान है तो मैं समझाता हु की बाबासाहब के अविरत संघर्ष और कार्य का हमने बहुतही बेहूदा और घटिया मूल्याङ्कन किया है। जिस महापुरुषने अपने जीवन के आखरी क्षणों तक कहा की ' मेरे नाम की जय जयकार करने कीबजाई मेरे दृष्टी से जो महत्वपूर्ण कार्य है उसे अपने प्राणों से ज्यादामहत्व देकर पूरा करने का प्रयास करो' । और विडम्बना तो देखो की उस महापुरुष के सम्पूर्ण जीवन कार्य तथा आन्दोलन को जोरदार नारेबाजी, रेलीया, जबरदस्त चन्दा वसूली, नशे में जयंती के अवसर पर थिरकते लोग, रंग गुलाल और नाच गानों पर बेहताशा खर्च इस प्रकार की बातो मैं तब्दील किया जाताहै. और हमें लगता है हम बाबासाहब का सम्मान कर रहे है . और यह सब करते समय हमारी मानसिकता इतनी संकुचित हो गई हैकी हमे लगता है की जो लोग और जो संगठन ऐसा कर रहे है वो बाबासाहब कासम्मान कर रहे है .साथियों यह सब बाबासाहब और हमारे सभी महापुरुषों के आचरण के विरुद्ध है .हम ऐसा करके बाबासाहब के सपनो का भारत निर्माण नहीं कर सकते. खास करके समाज के बुद्धिजीवी वर्ग ने तो ऐसा नहीं करना चाहिए क्योकि बाबासाहब ने बुद्धि जीवी वर्ग के निर्मिती को प्राथमिकता दी है. वे जानते थे की बुद्धिजीवी वर्ग व्यवस्था परिवर्तन का आन्दोलन चला सकता है . तो क्या अनुसूचित जाती ,अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्य वर्ग से निर्मित बुद्धिजीवी वर्ग अपने निर्माताओ की इच्छा अनुरूप कार्यरत है ? इसकी समीक्षा करने केबाद पता चलता है की यह वर्ग ऐसे किसी कार्य मे सक्रिय रूप से भागीदार दिखाई नही देता । इतना ही नही, जिस समाज से यह वर्ग आया है , उस समाज कोभी यह उपेक्षित भाव से देखता है और उससे दूर रहता है । यह अनुभव अपनेजीवन काल के उत्तरार्ध मे बाबासाहब डाँ अंबेडकर को भी हुआ और उन्होने बड़ेही दुखी मन से 18 मार्च 1956 को आगरा के रामलिला ग्राउंड मे कहा की "मुझे पढ़े लिखे लोगों ने धोखा दिया है, मै सोचता था की पढ़ लिखकर यह वर्ग अपने समाज की सेवा करेगा , मगर मै देख रहा हूँ की मेरे इर्द-गिर्द क्लर्को की भीड़ इकट्ठा हुई है , जो अपना ही पेट पालने मे लगी हुई है ।" यह आहत भावनाइस बात का सबूत है की पढ़ा लिखा बुद्धिजीवी वर्ग अपने समाज से और उसके स्नेहभाव से दूर दूर जा रहा है । यही वजह है की गाँवो मे रहने वाले लोगोके साथ अन्याय, अत्याचार और भेदभाव का व्यवहार बढ़ गया है । जिस कार्य के लिए डाँ बाबासाहब अंबेडकर ने इस वर्ग का निर्माण किया था उसकार्य मे यह वर्ग दिखाई नही देता। जिस वर्ग से नेतृत्व की अपेक्षा की गईथी , वह वर्ग सरकार का नौकर बनकर रह गया है , आधे अधूरे और कच्चे लोगो केहाथो मे आंदोलन की बागडोर छोड़ दी गई है । इसका नतीजा हम देखते है की हमारे महापुरुषो का आंदोलन आज चलता हुआ नजर नही आता ।
इसलिए बुद्धिजीवीवर्ग को वही कार्य करना चाहिए जिसकी उसके निर्माताओ ने उनसे अपेक्षा कीथी . देशभर मैं गैरबराबरी की व्यवस्था चल रही है. जब तक उस व्यवस्था मैं परिवर्तन नहीं होता तब तक अनु.जाती, अनु.जनजाति, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्य वर्ग के लोग व्यवस्था मैं पिसते रहेंगे, और उनके साथ हर तरह का भेदभाव होते रहेगा . इसीलिए बुद्धिजीवी वर्ग को व्यवस्था परिवर्तन के लिए संगठित होना चाहिए , संगठित करना चाहिए और एक प्रभावी आन्दोलन बनाना चाहिए. आओं हम सब बुद्ध के जन्मदिन के शुभ अवसर पर उनके सपनो का भारत निर्माण करने का प्रण करते है .
बहुत बढ़िया. मिशन जारी रहे.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद , सर जी आपका आशीर्वाद बना रहे बस
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