हे ! मेघ ऋषि की सन्तान
तु अपने आप को पहचान
इस जगत मे था नर नग्न
खाता पीता व मस्ती मे मग्न
आखिर पम्पा सरोवर के पास
जगी नग्नता बचाने की आस
माता मेघणी ने काता सुत
बुनने मे ऋषि मेघ गये जुत
कहलाये ताना बाना करके "बुनकर"
तो कही सुत्रौ को एक कर "सुत्रकार"
कभी जगत न कहा "जुलाहा"
तो कभी "मेघरिख" नाम से बुलाहा
बने मानव इज्जत के रखवाल
धरती पर यो आये "मेघवाल"
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