आज भारतीय दो अलग -अलग विचारधाराओं द्वारा शाशित शोषित हो रहे हैं। उनके राजनीतिक आदर्श जो संविधान के प्रस्तावना में इंगित हैं वो स्वतंत्रता , समानता , और भाई -चारे को स्थापित करते हैं। और उनके धर्म में समाहित सामाजिक आदर्श इससे इनकार करते हैं।डा.आम्बेडकर

मंगलवार, 30 अप्रैल 2013

अनुसूचित जाती का एक बहुत बड़ा हिस्सा खुद को एक ऋषि की संतान मानता है.

अनुसूचित जाती का एक बहुत बड़ा हिस्सा खुद को एक ऋषि की संतान मानता है. वह इस ऋषि को वाल्मीकि बताता है और कहता है कि इस ऋषि ने रामायण की रचना की. परन्तु इसी हिस्से के बहुत से विद्वानों ने इस बात का कई प्रमाणिक आधार रखते हुए कई दशकों से खंडन किया है. एक तथ्य यह निकल कर आता है कि राम ने तो उस वक्त स्वयं एक ब्राह्मण के कहने पर उस शम्बूक का वध कर दिया था जो कि शूद्र था. ऐसा राम ने इसीलिए किया था क्योंकि शम्बूक खुद पढने-लिखने लग गया था और शुद्र समाज को पढ़ाने-लिखाने लग गया था. तो वह राम जो एक शुद्र का इस बात पर वध कर दे कि उसने ज्ञान प्राप्ति का मार्ग अपनाया, तो क्या वही राम शूद्र से भी अधिक सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक बहिष्कृत अछूत को अपने पर ग्रन्थ लिखने की सहूलियत दे सकता है? क्या वही राम एक पूर्ण रूप से बहिष्कृत के आश्रम में अपने बीवी बच्चों को छोड़ेगा? लेखक और विचारक भगवान दास जी की माने तो रामायण वाले वाल्मीकि को अछूतों के एक हिस्से के साथ जोड़ देना ब्राह्मणों की साजिश थी. यह उस समय रची गई जब अंग्रेज सरकार जनगणना करा रही थी. जनगणना के आधार पर समुदायिक अधिकार तय होने थे और आगे जा कर ब्रितिनिया सत्ता का बटवारा. मुसलमान पहले ही बता चुके थी कि उनकी जनसंख्या ब्राह्मणों से ज्यादा है. ब्राह्मण जो तब तक खुद को केवल ब्राह्मण कहते थे उन्होंने हिन्दु का चोला पहन लिया. इस छोले में उन्होंने कई जातियों को शामिल करने की साजिश रची जिससे कि मुसलामानों से भी बड़ा एक समुदाय नजर आए. एक तरफ डॉ अम्बेडकर हजारों वर्षों से सताए अछूतों के लिए राजनैतिक शक्ति तैयार कर रहे थे जिससे की उन्हें ब्राह्मण धर्म जो की तब तक हिन्दू धर्म का चोला पहन चुका था, की गुलामी से छुटकारा मिल जाये या कहे कि हिन्दु धर्म से छुटकारा मिल जाए. पर वहीँ दूसरी तरफ उसी शोषित जनसंख्या को गुलामी में रखे जाने का षड़यंत्र भी रचा जा रहा था. उसी षड़यंत्र का हिस्सा था अछूतों के एक बड़े हिस्से का ऋषि-करण, या कहे कि वल्मिकी-करण, या कहे कि ब्राह्मणी-करण, या कहे कि हिन्दु-करण या कहे कि गुलामी-करण. जिस जनसंख्या पर जिस शोषणकर्ता ने सबसे ज्यादा कठोर नियम बना कर उसे सबसे ज्यादा अपमानित किया था अब वही शोषित जनसंख्या उसी शोषणकर्ता के एक ऋषि को खुद का पिता मान बैठी थी. जिस शोषणकर्ता के खिलाफ उसे संघर्ष करना चाहिए था वह उसी शोषणकर्ता की गुलामी स्वीकार कर चुकी थी. ऐसा नहीं है कि ऐसा सिर्फ अछूतों के ही साथ हुआ. ऐसा शूद्रों और बनियों के साथ भी हुआ. चमार से जाटव इसी षड़यंत्र का हिस्सा है. रैगर और खटीकों का राजपूती-करण, कुम्बकरों को प्रजापति ब्रह्मा कि संताने बनाना, गड़रियों का राजपूती-करण, आदि.

4 टिप्‍पणियां:

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  3. खटीक समाज की सेवा ही मेरा मुख्य उद्देश्य है
    समाज को खोया हुवा गोरव हासिल हो
    समाज शक्तिशाली बने
    यही मेरा सपना है
    जय खटीक समाज
    राजेश खटीक

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