आज भारतीय दो अलग -अलग विचारधाराओं द्वारा शाशित शोषित हो रहे हैं। उनके राजनीतिक आदर्श जो संविधान के प्रस्तावना में इंगित हैं वो स्वतंत्रता , समानता , और भाई -चारे को स्थापित करते हैं। और उनके धर्म में समाहित सामाजिक आदर्श इससे इनकार करते हैं।डा.आम्बेडकर

मंगलवार, 26 मार्च 2013

''''मेघवाल समाज दशा एवं दिशा'''' Meghwal Social Status and Direction

मेघवाल समाज की उत्त्पति ,इस जाती के महान आदर्शो ,परम्पराओ और इतिहास का उल्लेख अनेक लेखको द्वारा किया जाकर इस जाति के प्राचीन गोरव से जन -मानस को समय -समय पर अवगत कराया जाता रहा हैं ! शिक्षा के व्यापक प्रचार -प्रसार के फलसवरूप इस जाति ने प्रशासन , शिक्षा ,चिकित्सा और तकनीकी के काम उच्च पद प्राप्त किये हैं ,साथ ही निजी शेत्रो में भी यह जाति अपनी योग्यता का परचम लहरा कर नित्य विकास की और अग्रसर हैं !डा ०अम्बेद्कर के मूल मन्त्र का प्रथम वाक्य '''शिक्षित बनो '''को अंगीकार कर व् '' education is the most eftertive sathd powerful instrument of social change '''की अवधारणा से समाज नई दिस की और अग्रसर हैं !शिक्षा की बदोलत ही समाज की जर्जर वय्व्स्थाओ में परिवर्तन व् सोच में बदलाव आया हैं यदि इसी रफ़्तार से समाज में शिक्षा का सार्वजनिककरन चलता रहा तो निशित रूप से इस जाती का भविष्य देदित्य्मान रवि के समाज प्रखर बनेगा ,किन्तु वर्तमान में शिक्षितो की संख्यात्मक बढ़ोतरी के साथ- साथ गुणवत्ता बढ़ोतरीभी आवश्यक हैं ,इस हेतु भागीरथी प्रयास किये जाने चाहिए !आज आवश्यकता हैं एसी शिक्षा की जो रोजगार की गारंटी पर्दान करे ,प्रतिस्पर्धा के युग में सवामित्व स्थापित करने के प्रयास कर आर्थिक उन्नति की और बढ़ा जा रहा हैं !अर्थ प्रधान युग में शिक्षा के साथ अर्थ को जोड़कर देखा जाना चाहिए !वस्तुत शिक्षा और आर्थिक उन्नति के साथ -साथ इस जाती को धार्मिक रूप से एक करने वाले धर्मगुरु की आवश्यकता हैं ,जो धार्मिक आडम्बरो व् उन्मद्ताओ से उपर उठकर एकता की राह प्रशस्त कर सके ,एक और जन्हा कतिपय जातीय धर्मगुरूओ के नाम से ऊपर जन सेलाब इकट्ठा कर धार्मिक एकता प्रदर्शित करते हैं वही यह राजनितिक शक्ति प्रदर्शन का रूप लेकर सत्ता पक्ष एवम विपक्ष से भावी लाभ अर्जन का हेतु बनता हैं ,किन्तु विडंबना यह हैं की मेघवाल जाती धार्मिक रूप इ किसी एक आराध्य या धार्मिक गुरु के अधीन नही हैं !अत;हमें सामूहिक रूप से ऐसे धर्म गुरु का मार्गदर्शन प्राप्त करना होगा जो इस जाती को शेक्षिक एवम राजनेतिक उन्नत्ति प्रदान करे !शॆक्षिक एव आर्थिक उन्नति से ही राजनितिक मजबूती प्राप्त होगी !यह आलोचना नही अपितु यतार्थ हैं की राजनीती में समाज का वर्चस्व नही हैं !भले ही संखायाताम्क रूप से हम आगे हैं ,किन्तु विचारशील ,निर्भीक ,योग्य एव उर्जावानो की कमी हैं !दुर्भाग्य की दलित कही जाने वाली जाती को नेता भी अनपढ़ व विचारशून्य ही मिले हैं ,जो व्यक्तिगत स्वार्थो की परिधि लाँघ ही नही पाए !हमें शिक्षित ,विचारवान ,उर्जस्वी एवम जातीय हित के लिए तत्पर व्यक्तित्व वाले नेता को ही समर्थन देना होगा !सवर्णों की सदेव प्रत्येक चुनाव में इस जाती के अयोग्यतम व्यक्ति को समर्थन देकर विजयी बनाने की चाल रही हैं आमूलचूल परिवर्तन सत्ता प्राप्त कर ही किये जा सकेगे ,इस हेतु वार्डस्तर से संसद तक के पदों को प्राप्त करना होगा !नेताओ के लुभावने वादों व लच्छेदार भाषणों से बचकर यथार्थ की पहचान करनी होगी !जाती का विकास केवल गली में सी .सी .रोड व सामूहिक सभा भवन से नही होगा ,कतिपय नेता इनके द्वारा समाज के विकास का दंभ भरकर की राजनेतिक स्वार्थ पूर्ति करते हैं ,हमें ऐसे लोगो से बचकर विकासवादी कार्यो को अपनाने पर बल देना चाहिए ,समाज बहुसंख्यक हैं किन्तु एकता के अभाव में दिशाहीन हो रहा हैं ,फलस्वरूप जाती की वास्तविक उन्नति नही हो पा रही हैं !रोजगार प्राप्ति के उपरांत जाती का व्यक्ति व्यक्तिवादी होकर समाज की उपेक्षा प्राप्त कर रहा हैं अत .उसे सहयोग ,समर्थन व जातीय निष्ठा ही समाज की उपेक्षा से बचा पायेगी !पाठक इसे केवल नकारात्मक विचारधारा न माने अपितु मूल में छिपे यथार्थ को पहचाने !



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