आज भारतीय दो अलग -अलग विचारधाराओं द्वारा शाशित शोषित हो रहे हैं। उनके राजनीतिक आदर्श जो संविधान के प्रस्तावना में इंगित हैं वो स्वतंत्रता , समानता , और भाई -चारे को स्थापित करते हैं। और उनके धर्म में समाहित सामाजिक आदर्श इससे इनकार करते हैं।डा.आम्बेडकर
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गुरुवार, 22 फ़रवरी 2018

राष्ट्र निर्माण में शिक्षकों की सबसे अहम भुमिका ।



राष्ट्र निर्माण में शिक्षकों की सबसे अहम भुमिका । 

शिक्षक व शिक्षा के बारे में परम्परागत भारतीय दृष्टिकोण  पहले से बहुत सकारात्मक रहा है।  कहा गया है की सा: विद्या या विमुक्तये !  अर्थात विद्या वही है ,  जो व्यक्ति को मुक्त कर देती है | यह मुक्ति की चाह जीवन के तमाम दुराग्रहों से रहित होने की चाह है |
वही गुरु शिक्षा के माध्यम से शिष्यों की चेतना में मुक्ति के इस सस्कार को प्रगाढ़ करता है , गुरुकुल परम्परा के दौर में तो कई तरह के शिक्षक समाज में रहते थे और दूसरे वे जो निःशुल्क शिक्षा देते थे | भारतीय समाज में विद्या के दान को सबसे बड़ा दान माना गया है , और आधुनिक युग में शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण मानी गयी है | निःशुल्क विद्या दान का संकल्प लेकर जीने वाले व्यक्ति के परिवार की भी आवश्यकताओं की पूर्ति करता था , इसलिए समाज में उसे कुछ विशेष अधिकारों से सम्पन किया गया था | शिष्यों के प्रति अपनत्व भाव रखते हुए उन्हें जीवन के समग्रता और कौशल से अवगत कराना भारतीय शिक्षा व्यवस्था की मूल पहचान होती थी | इसलिए विद्यार्थी सारी उम्र अपने शिक्षक के प्रति श्रद्वाभाव तन मन से  परिपूर्ण होते थे ,  कालांतर में जीवन की जटिलताओ से गुजरते हुए इस व्यवस्था में विकृतियों आई और इस विशेष सामाजिक सम्मान का लोग दुरुपयोग करने लगे | स्वार्थ द्वैष और कुंठा का हर युग  में अस्तित्व  रहा है , नही तो अपने संकल्प के दम पर  विशिष्ट योग्य धनुर्धर बने एकलव्य से दोर्णाचार्य गुरुदक्षिणा में उसका अंगूठा क्यू मांगते | अन्य शिक्षा शास्त्रीयो ने कहा कि सिफारिशों के आधार पर जो शिक्षा प्रणाली अंग्रेजो ने लागु की उसका देश को काफी नुकसान हुआ | शिक्षा प्रणाली ऐसी लागु होनी चाहिए की आजादी  के बाद  जीवन के प्रति सकारात्मक बोध जगाती हो और जीवन शैली का आकलन कर सके | अधिकाधिक हमारे नीति नियमो का उसी शिक्षा पद्धति को अपना लिया | बात इतने तक ही सीमित रहती तो गनीमत होती , लेकिन नब्बे के दशक में बाजारवाद की आंधी में सेवा का पर्याप्त समझने वाली शिक्षा का सबसे बड़ा पहलू है , इसमें विभिन्न स्तरों पर शिक्षकों के शोषण को भी प्रोत्साहित किया और निजी विद्यालयों में कम वेतन पर शिक्षकों को लगाकर कक्षा क्लास का सलेब्स पूरा करवा दिया जाता है | कम वेतन मिलने की शिकायत आम बात है , उसी प्रकार सरकारी क्षेत्र  का शिक्षक जनगणना पशुगणना से लेकर मिड डे मील की गुणवत्ता बनाए रखने की जिम्मेदारियों में अपनी गरिमा को खपाता रहता है | इस हालात ने शिक्षकों के मनोबल पर प्रतिकूल असर डाला है तमाम चुनोतियो के बावजूद शिक्षक अपनी गरिमा को बनाये की जद्दोजहद से जूझना जानता है , यही कारण है कि आज भी जीवन के विविध क्षेत्रों में बड़े मुकाम तक पहुचते है , तो सार्वजनिक तौर पर उनके सामने नतमस्तक नजर आते है |
शिक्षक वो होता है जो शिक्षण संस्थानों में विद्यार्थियों के समुख अपनी योग्यता का परिचय देता है और सही और गलत के रास्ते के बारे में बताता है इसलिए शिक्षक सबसे  महत्वपूर्ण माना गया है |

सम्पादकीय

रिपोर्ट प्रस्तुत कर्ता - हिम्मत कालमा थोबाऊ
( सामाजिक कार्यकर्ता )